शूटिंग में मेडल दिलाने वाली पहली भारतीय महिला : मनु भाकर ने 10 मीटर एयर पिस्टल में ब्रॉन्ज जीता

 पेरिस ओलिंपिक में भारत को पहला मेडल 16 साल की उम्र में दो गोल्ड मेडल जीते 

ओलिंपिक के इतिहास में शूटिंग में मेडल दिलाने वाली मनु पहली भारतीय महिला  हैं। 



पेरिस ओलिंपिक्स में भारतीय शूटर मनु भाकर ने इतिहास रच  कर विमेंस 10 मीटर एयर पिस्टल इवेंट में ब्रॉन्ज मेडल जीता।

उन्होंने फाइनल में 221.7 पॉइंट्स के साथ कांस्य जीता।

ओलिंपिक के इतिहास में शूटिंग में मेडल दिलाने वाली मनु पहली भारतीय महिला हैं।


शूटिंग में 12 साल बाद मेडल दिलाया : 


मनु भाकर ने भारत को ओलिंपिक में 12 साल बाद शूटिंग का मेडल दिलाया है। 

भारत को इस खेल में आखिरी ओलिंपिक मेडल 2012 में मिला था। 

यह शूटिंग में भारत का अब तक का 5वां मेडल है। राज्यवर्धन सिंह राठौड़ ने 2004 में सिल्वर, अभिनव बिंद्रा ने 2008 में गोल्ड और 2012 में विजय कुमार ने सिल्वर और गगन नारंग ने ब्रॉन्ज जीता था।



PM मोदी ने फोन पर बात करके बधाई दी :

 
मनु भाकर के ब्रॉन्ज जीतने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें फोन करके बधाई दी। 

उन्होंने कहा- आपकी सफलता से आनंदित हूं। 

आगे और अच्छा करेंगी। प्रधानमंत्री ने X पोस्ट पर लिखा- 'यह एक खास जीत है। मनु भाकर शूटिंग में मेडल जीतने वाली पहली महिला बनी हैं...शानदार उपलब्धि।'

मनु बोलीं- गीता पढ़ने से मदद मिली : 


जीत के बाद मनु ने कहा- 'मैं गीता बहुत पढ़ती हूं। 

इससे फोकस करने में मदद मिलती है।

 आज के मैच में मैंने आखिर तक टारगेट पर फोकस किया। मैं खुश हूं। 

भारत इससे ज्यादा डिजर्व करता है। उम्मीद है कि बाकी इवेंट में भारत और मेडल जीतेगा।'


टोक्यो में मेडल चूका तो शूटिंग छोड़ने वाली थीं मनु 2021 : 





ये 2021 के टोक्यो ओलिंपिक की बात है। 

उस वक्त नंबर वन शूटर रहीं मनु भाकर क्वालिफाइंग राउंड में थीं। 

मनु को 55 मिनट में 44 शॉट लेने थे। तभी उनकी पिस्टल खराब हो गई। 

20 मिनट तक वे निशाना नहीं लगा पाईं। पिस्टल ठीक हुई, तब भी मनु सिर्फ 14 शॉट लगा पाईं और फाइनल की रेस से बाहर हो गईं।

मनु भारत लौटीं तो इतनी उदास थीं कि मां को फिक्र होने लगी। 

उन्होंने मनु की पिस्टल छिपा दी, ताकि उस पर नजर न पड़े और मनु दुखी न हो। 

मां सुमेधा कहती हैं, मैं मनु का मैच नहीं देख पाई थी। 

बाद में उसका वीडियो देखा तो बहुत दुख हुआ। मुझे लगा कि जब मैं दुखी हो रही हूं, तो मनु की क्या हालत हो रही होगी।’

हरियाणा के झज्जर की रहने वालीं उसी मनु भाकर ने भारत को पेरिस ओलिंपिक में पहला मेडल दिलाया है। 

उन्होंने 10 मीटर एयर पिस्टल की विमेंस कैटेगरी में ब्रॉन्ज जीता। 

वे शूटिंग में ओलिंपिक मेडल जीतने वाली पहली भारतीय महिला बनी हैं। 

उन्होंने फाइनल इवेंट में 221.7 पॉइंट्स लेकर तीसरा स्थान हासिल किया, मनु पॉइंट वन से सिल्वर मेडल चूक गईं। 

मनु ने क्वालिफाइंग इवेंट में 600 में से 580 पॉइंट्स हासिल किए और 45 शूटर्स में तीसरे नंबर पर रहीं।


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स्कूल में शूटिंग शुरू की, पहले ही शॉट पर कोच बोले- ये लड़की मेडल लाएगी : 



मनु कई गेम में हाथ आजमा चुकी थीं, लेकिन कुछ समझ नहीं आ रहा था। 

उनकी मां जिस यूनिवर्सल स्कूल में प्रिंसिपल थीं, वहां शूटिंग रेंज भी है। मां ने मनु को पापा के साथ शूटिंग रेंज भेजा। 

मनु ने पहला ही शॉट मारा था कि फिजिकल टीचर अनिल जाखड़ ने उनका हुनर पहचान लिया। उन्होंने मनु की मां से कहा कि मनु को इस गेम में टाइम देने दीजिए, ये देश के लिए मेडल लाएगी।

मनु की मां चाहती थीं कि बेटी डॉक्टर बने क्योंकि घर में कोई डॉक्टर नहीं था। वे कहती हैं, ‘मनु पढ़ने में अच्छी थी। 

खास तौर से बायोलॉजी में बहुत स्ट्रॉन्ग थी। मेडिकल एंट्रेंस एग्जाम की तैयारी के लिए उसने कोटा में कोचिंग सेंटर भी देख लिया था।'

तभी फिजिकल टीचर अनिल जाखड़ की एंट्री हुई। 

उन्होंने मनु की मां से कहा कि आप कुछ दिन के लिए मनु को मुझे दे दो। मैं चाहता हूं कि वो शूटिंग करे। तब मनु की उम्र सिर्फ 14 साल थी।

उस वक्त रियो ओलंपिक-2016 खत्म ही हुआ था। 

मनु ने एक हफ्ते के अंदर पिता से शूटिंग पिस्टल लाने के लिए कहा। 

पिता ने बेटी की बात मानकर पिस्टल दिला दी। 

एक साल बाद ही मनु नेशनल लेवल पर मेडल जीतकर शूटिंग फेडरेशन के जूनियर प्रोग्राम के लिए सिलेक्ट हो गईं। 

वहां इंटरनेशनल मेडलिस्ट जसपाल राणा का साथ मिल गया। जसपाल राणा ही अभी मनु के कोच हैं।

बॉक्सिंग से शुरुआत की, आंख में चोट लगी तो छोड़ दी : 



मनु के पिता रामकिशन उन्हें बॉक्सर बनाना चाहते थे। 

मनु के बड़े भाई बॉक्सिंग करते थे। इसलिए मनु भी बॉक्सिंग करने लगीं। नेशनल स्तर पर मेडल भी जीते। एक दिन प्रैक्टिस करते वक्त मनु की आंख में चोट लग गई। आंख बुरी तरह सूज गई।

चोट लगने के बाद मनु ने बॉक्सिंग छोड़ने का मन बना लिया। इसमें मां का भी पूरा साथ मिला। मां ने मनु के पापा से साफ कह दिया कि जिस गेम में बेटी को चोट लगे, वो गेम नहीं खिलाएंगी।

उसके बाद मनु ने बॉक्सिंग छोड़ दी और मार्शल आर्ट्स में हाथ आजमाया। 

यहां मनु को लगा कि इस गेम में चीटिंग होती है। उन्होंने मार्शल आर्ट भी छोड़ दिया। 

आर्चरी, टेनिस, स्केटिंग की प्रैक्टिस शुरू की, मेडल भी जीते, लेकिन किसी में मन नहीं लगा।

मां डॉक्टर बनाना चाहती थीं, टीचर ने कहा डॉक्टर को कौन जानेगा : 
मनु की मां डॉ. सुमेधा भाकर स्कूल प्रिंसिपल रही हैं। 



वे चाहती थीं कि बेटी डॉक्टर बने। स्कूल के फिजिकल टीचर ने मनु को स्पोर्ट्स में डालने के लिए कहा। 

टीचर ने कहा कि डॉक्टर को कौन जानेगा, अगर मनु देश के लिए मेडल जीतेगी, तो पूरी दुनिया उसे जानेगी। डॉ. सुमेधा को फिजिकल टीचर की सलाह ठीक लगी। 

यहीं से मनु की स्पोर्ट्स जर्नी शुरू हो गई।





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